Last modified on 20 जुलाई 2014, at 02:34

सड़कों पर / बुद्धिनाथ मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:34, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लहँगा चुनरी फिरन दुपट्टा
लाचा-चोली सड़कों पर
बित्ता-बित्ता सरक-सरक कर
आई खोली सड़कों पर ।

खुली-खुली राहें थीं, जिन पर
मिलते थे हम गले कभी
अब तो कर्फ़्यू है, दंगे हैं
मिलती गोली, सड़कों पर ।

काश कि ऐसा भी दिन आए
धुन्ध कटे चौबारे की
हरसिंगार के फूल बिखेरे
अक्षत-रोली सड़कों पर ।

इसने किया इशारा, उसने
दिया जवाब इशारे में
जो कुछ होनी थी बाग़ों में
वो सब हो ली सड़कों पर ।

क़दम-क़दम पर विज्ञापन हैं
क़दम-क़दम पर गड्ढे हैं
बचके रहना, देखके चलना
ऐ हमजोली, सड़कों पर ।

‘बुरी नज़रवाले तेरा मुँह
काला’ कहकर भाग गई
याद रही बस ट्रकवालों की
आँखमिचौली सड़कों पर ।

दीनाभद्री, आल्ह, चनैनी
बिहुला, लोरिक भूत हुए
नये प्रेत के सौ-सौ चैनल
बोलें बोली सड़कों पर ।

ज़रा-ज़रा सी भूलों पर ही
कितने ‘नाथ’ अनाथ हुए
भूल गए बस आते-आते
घर की बोली सड़कों पर ।