हम संताली,
वन के भोले-भाले वासी ।
एक हाथ में धनुष राम का
एक हाथ मुरली कान्हा की ।
दोनों मिली विरासत हमको
तन में, मन में उनकी झाँकी ।
हम संताली,
छल से दूर, सहज विश्वासी ।
वन के पेड़ सहोदर अपने
उनका साथ कभी ना छूटे ।
जाँगरतोड़ हमारी मिहनत
से पानी के सोते फूटे ।
हम संताली,
रहते जहाँ वहीं है कासी ।
ओ मारीचो ! अब मत आना
इस पर्वत पर धर्म सिखाने ।
हम गिरिजा के पुत्र चले हैं
मन-मन्दिर में दीप जलाने ।
हम संताली,
जिएँ गुरूजी, कटे उदासी ।