कितनी तरक़्क़ी कर ली।
इतनी कि लिखना चाह कर भी रुकता है मन ।
लैंग्वेज़ इनपुट ठीक है, यूनिकोड कैरेक्टर्स हैं, प्यार पर्दे पर बरसने को है, पर
क्या करें उन ज़ालिमों का जो ख़ुद को ज़ुल्मों के तड़पाए मानकर ताण्डव नाच रहे हैं;
मन कहता है लिखो प्यार और फ़ोन आता है कि चलो इकट्ठे होना है जंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी है
क्या करें
कितनी बार कितनी विरोध सभाओं में जाएँ कि जंगखोर धरती की आह सुन लें
कहना है खुद से कि हुई है तरक्की
प्यार को रोक नहीं सकी है नफ़रत की आग
वो रहता अपनी जंगें लड़ें
हम अपनी जंगें लड़ेंगे
हुई है तरक़्क़ी
उनकी अपनी और हमारी अपनी
सड़क पर होंगे तो गीत गाएँगे
घर दफ़्तर में लैंग्वेज़ इनपुट ठीक है, यूनिकोड कैरेक्टर्स हैं, प्यार पर्दे पर बरसता रहेगा ।