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अन्तिम-इच्छा / महाभूत चन्दन राय

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मैं किसी नए जन्म की कामना नहीं करता
मैं चाहता हूँ इसी जीवन में एक वृक्ष की भाँति जन्मना
मैं वृक्ष का वेश और वृक्ष की वृत्ति चाहता हूँ
मैं वृक्ष-सी उदार विराटता और उसका सहिष्णु धैर्य चाहता हूँ
मैं वृक्ष-चित्त होकर इन शान्ति-दूतों-सा विश्व में शान्ति-सन्देश फैलाना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ वृक्षों सा हरित आचरण !

मैं इन उज्जवल हिमशिखाओं से उतरती करुणामयी नदियों की काया चाहता हूँ !
मैं चाहता हूँ इन अविरल बेपरवाह बहती जलधाराओं का स्पन्दन
जो किसी सरहद और दायरे को नहीं मानती
मैं नदी-सी मानवीय समन्वयता की पोषक प्रवृति चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ नदियों सा संघर्षशील प्रवाहमय जीवन

मैं तपस्यारत पहाड़ों से वैराग्य का इच्छुक हूँ
मैं इन वज्रशिलाओं-सी अडिग स्थिरता के सौंदर्य का अभिलाषी हूँ
मैं उन पहाड़ों सी निर्भयता और शौर्य चाहता हूँ !

मैं दरअसल पानी का स्वरूप चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ पानी-सी अनाकार सहृदयता
मैं पानी-सा साधारण जीवन-स्थिति चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ पानी-सी विरक्ति

मैं दरअसल कर्तव्यों, अधिकारों, उत्तरदायित्वों, उपेक्षाओं, असफलताओं, झूठी क्षमा-प्राथनाओं, और क्षमाओं की क्षतिपूरक खानपूर्तियों से भरे इस बोझिल जीवन से ऊब चूका हूँ !
मैं लगातार मशीनी होती इस आधुनिक सभ्यता शैली से छुटकारा चाहता हूँ !
मैं मिटटी का यह तन ढोते हुए महज मिटटी नहीं होना चाहता और मरते हुए महज मृत्यु को पाना नहीं चाहता
मैं उस अलक्षित योनि में जन्मना चाहता हूँ….
जिसकी कोई प्रजाति-वर्ण-वर्ग-धर्म न हो
मैं चाहता भोर की मधुरम बेला में छत की मुण्डेर पर चहचहाती गौरेया सा उन्मुक्त सा जीवन !
मैं चाहता हूँ किसी अपरिचित कविता के शब्दों में तृप्ति-सा जन्म सकूँ !