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सदस्य:शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं

महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं

वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं

ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे मैं मानता हूं ...मेरी भी..... कई ख़ताएं हैं

मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद