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चले सितारे / रमेश रंजक

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एक स्वर्ण मछली-सी
उछली
नीली-नीली झील से
उठी कचहरी
चले सितारे
हारे हुए वकील-से

किसी हवा ने आकर
खिड़की खोल दी
धुएँ भरे कमरे में
हल्दी घोल दी

खिड़की का
केसरिया माथा
जीत गया कन्दील से
उठी कचहरी
चले सितारे
हारे हुए वकील-से