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अनकही कहानी / रमेश रंजक

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जितने दिन मिले मुझे
सब मैंने बो दिए
धुँधले नक्षत्र सभी
गीत में पिरो दिए

पग-पग पर मिला मुझे
लावारिस धोखा
कितना-कुछ दिया उसे
क्या लेखा-जोखा

छलना ने छला जहाँ
अपने पर रो दिए

एक ज़हर की शीशी
अनकही कहानी
घोल गई नस-नस में
रंग आसमानी

अब कैसे उभरें जब
कण्ठ तक डुबो दिए