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गीत-1 / केदारनाथ अग्रवाल

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मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता

मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता

जल का जहाज जैसे पल-पल डोलता

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता

मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता

तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता

मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता

मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।