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यक्ष-प्रश्न / धनंजय सिंह

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चिन्ताओं से ग्रसित हृदय में
लघु आशा की क्षीण किरण-सी
अथवा
जंगल की बीहड़ पतली पगडण्डी जैसी
कर्त्तव्यों की संकुल रेखा
जिस पर दौड़ लगाते सबके अधिकारों के अश्व निरन्तर
नहीं किसी को ध्यान
किसी के मृदु स्वप्नों की बीरबहूटी
किसी अश्व की टाप तले आ कुचल न जाए !
कब समाप्त होगी आखिर यह दौड़
नहीं है ज्ञात किसी को
और न जाने कब हम इस पगडण्डी पर चलना सीखेंगे ???