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प्रात-चित्र / केदारनाथ अग्रवाल

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रवि-मोर सुनहरा निकला,

पर खोल सबेरा नाचा,

भू-भार कनक-गिरी पिघला,

भूगोल मही का बदला ।
नवजात उजेला दौड़ा,

कन-कन बन गया रूपहला ।

मधुगीत पवन ने गाया,

संगीत हुई यह धरती,

हर फूल जगा मुस्काया !