Last modified on 30 अगस्त 2014, at 15:25

मानव-बम / ज्ञानेन्द्रपति

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 30 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्रपति |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुतली-बम से लेकर
ट्रांजिस्टर बम तक
कितनी तरह के बम फटे थे
मानव-बमों के फटने से पहले
जनसभाओं में जनपथों पर

सुतली बम के लिए देह-भर सुतली
मिल सकती थी किसी किराने की दुकान पर
कुण्डली बाँधे लटकती कोने में, दंश-दृढ़
ट्रांजिस्टर बम के लिए
खोल-भर ट्रांजिस्टर मिल सकता था
चावड़ी मार्केट में या ठठेरी बाजार में थोक-का-थोक
और गुड़िया-बमों के लिए प्लास्टिक की गुड़ियाएँ
चाहे जितनी
किसी भी खिलौनों की दुकान पर

मानव-बम के लिए
जिस माँ-कोख ने जाया है
कोंपल-कोमल शिशु-तन
उसने तो बिकाऊ नहीं ठहराया है उसे
कितने भी ऊँचे दामों

किस माँ-गली से ख़रीद लाए हैं वे
बम का खोल बनाने मानव-तन कि मानव-मन
भावनाओं की अनगिन उमगती कोंपलोंवाला
सद्यःप्रस्फुटित किसी विचार से महमहाता
मानव-मन
विकासी प्रकृति का परम
वर्द्धमान जीवन का चरम
मानव-मन
जिसकी ब्रेन-वाशिंग कर
बहुविध उपायों से
कभी किसी पवित्र पृथुल ग्रन्थ के हवाले से
कभी किसी गोपनीय गुटका क़िताब के बल पर
कभी किसी महान उद्देश्य की बारूद भर
कभी... ओह! इस या उस तरह
बनाए जा रहे हैं मानव-बम
तैयार किए जा रहे हैं सुसाइड-स्क्वैड -- आत्मघाती दस्ते
किन्ही सत्तालोलुप सेनानायकों के हित

और असीसती माँएँ कलपती रह जाती हैं
उसके लिए जो उनका ही पसार था
कि जिसके पंख अभी पसरे ही थे आकाश में