Last modified on 2 सितम्बर 2014, at 09:49

बियाना की याद / प्रांजल धर

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:49, 2 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रांजल धर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उमानन्दा
ब्रह्मपुत्र की विशाल
चौड़ाई में टिककर खड़े
मयूरद्वीप पर
कच्चे नारियल का एक अंजुलि
मादक पानी पिया,
और शाम को नदी चीरते
ख़ूबसूरत शिकारे पर
चार पल
जीवन को
एक बिल्कुल अलग
कोण से जिया!
लीचियाँ जीवन की माला में
मोती बनीं
और कानों में गूँज उठीं
शंकरदेव की पावन-पौराणिक
ध्वनियाँ घनी.
नदी-द्वीपों तक ले जाते मल्लाह,
उनकी नौकाएँ और उनके पतवार;
चार क्षण को ही सह,
कभी-कभी कितना ममतामय
लगता है यह संसार!
समुद्र की लकीरों में
क्यों धुँधला गया
पूर्वोत्तर का
वह संगीतप्रेमी निश्छल परिवार?
बेगानेपन का बड़ा
संत्रास पाया है
इसीलिए उस असमिया
परिवार ने सजल नेत्रों से
एक बियाना गाया है
जिसे कोई समझ नहीं सकता.
चीखते दर्द की सिलवटों में
लिपटी आँसुओं की चादर
फटकर चीथड़े हुई चली जाती है
और
डालगोबिन्द के उस बियाना की
बड़ी याद आती है.
बड़ी याद आती है.

(नोट - बियाना असम का एक विरह गीत है)