जी, हम हैं पण्डे पुश्तैनी
दर्ज बही में अपनी
देखो परदादा का नाम तुम्हारे
संस्कार करवाने आते
पूर्वज यहीं तुम्हारे सारे
हमें ज्ञान है हर निदान का
पाप- ताप के क्षमादान का
तभी यहाँ आते रहते हैं
बौद्ध, समाजी, वैष्णव, जैनी
हमें पता हर सीधा रस्ता
हम हैं ईश्वर के अधिवक्ता
ऐसा सुगम उपाय पुण्य का
कोई तुमको बता न सकता
कई पीढ़ियों को है तारा
करना यह विश्वास हमारा
कुछ भी करो साल भर चाहे
मन में मत लाना बेचैनी
क्यों चिन्ता में डूबे रहते हो यजमान
जागते- सोते
थोड़ा जीवन शेष
बिताते क्यों उसको यूँ रोते-धोते
हम ऐसा विनियोग करेंगे
दूर दोष-भय-रोग करेंगे
वहाँ न काम करेगी
गीता, रामायण या कथा, रमैनी
पिछले-अगले कई जन्म का
ऐसा समाधान है हम पर
शान्ति उन्हें भी हम दे सकते
जिनका है उपचार न यम पर
हम ब्रह्मास्त्र चला सकते हैं
भवनिधि पार करा सकते हैं
काम न भारी बुलडोजऱ का
करती कभी हथौड़ी-छैनी
कृपा-प्राप्ति के लिए
त्याग भी कुछ करना पड़ता है साधो !
सबकुछ यहीं पड़ा रह जाना
फिर क्यों सिर पर गठरी लादो
जब चाहो गंगातट आना
श्रद्धा से कुछ भेंट चढ़ाना
पा जाओगे
पुण्य- लाभ की हम से सीधी-सुगम नसैनी ।