मुँह-अन्धेरे उठ गया हूँ
घूम आया हूँ
दरख़्तों के तले होता
मुँह-अन्धेरे पक्षियों के बोल
जैसे गुनगुनी-सी धूप में
सोता पहाड़ी से उतरता हो
मुँह-अन्धेरे वायु बहती है
हमारे प्राण में भरती हुई चन्दन
मुँह-अन्धेरे जग गई है माँ
झाड़ हाथ में लेकर
किया है
पूरे घर को साफ़
मुँह-अन्धेरे बैलों ने जगकर
बजाई घण्टियाँ अपनी
गया उठ उनका वह साथी गनेसवा
वह चराने ले गया उनको कहीं मैदान
मुँह-अन्धेरे मैंने सोचा है
करूंगा नीम की दातून
बस उगते ही सूरज के
मुँह-अन्धेरे मुँह दिखाई दे रहा है मेरा
मुँह-अन्धेरे मुँह दिखाई दे रहा सारे ज़माने का