तुम्हारा आना कितना भला तुम्हारा जाना कितना खला ! चार घण्टों की मेहमानी जगी होंठों पर जगरानी देखते ही भर आया गला । कोर की गाँठ-गठीली डोर हुई कमज़ोरी में पुरज़ोर बहुत दिन नीरसता ने छला । तुम्हारा जाना कितना खला तुम्हारा आना कितना भला !