Last modified on 23 सितम्बर 2014, at 12:53

मंजूर नहीं / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 23 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=अतल की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत अच्छी लगती हैं मेंड़ें
खेतों की सचाई के लिए
कितनी प्यारी लगती हैं कुर्सियाँ
                   भलाई के लिए,

बहुत मौजूँ लगती हैं दीवारें
घरों की सुरक्षा के लिए
बहुत भली लगती हैं खाइयाँ
किलों के आस-पास,
कितनी सुन्दर लगती हैं घाटियाँ
                   तराई के लिए

लेकिन...
ये मेड़ें, ये कुर्सियाँ, ये दीवारें...
मुझे हरगिज मंजूर नहीं
आदमी और आदमी के बीच
                   (तबाही के लिए)