Last modified on 25 सितम्बर 2014, at 12:30

स्वरों के देवता / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 25 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=अतल की ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

स्वरों के देवता आए बताने ।

तुम्हें स्वर-साधना की
अब, ज़रूरत क्या पड़ी है
उधर देखो, तुम्हारी दौड़ रेखा !
मरन के मोड़ के नज़दीक आ
                 गुमसुम खड़ी है
जिरह-बख्तर पहन भी लें
मगर किसके लिए अब
अदब से हो रहा बौना
स्वयं ही आदमी जब

नपुँसक कर दिए हैं
’मूल्य’ जबरन त्रासिका ने
किसी मुँहज़ोर ’क़ीमत’ को उठाने
स्वरों के देवता आए बताने ।

हरापन काटकर
बँजर बनाया जा रहा है
वो देखो ! एक रेगिस्तान
                 भागा आ रहा है
कुएँ अन्धे हुए
नलके महज खच-पच रहे हैं
फ़कत पानी बिना प्राणी
करोड़ों तच रहे हैं

बड़ी दिलदार नदियाँ छोड़ बैठीं
लहरियों की गमक वाले तराने
स्वरों के देवता आए बताने ।