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शमशेर / कुमार मुकुल

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चिकनी धूल भरी बदली ज्यों शुष्क भुर-भुरी

तलुए दो या छायाएं हृदय की

कि दो विमान खो ... खो ... जाते बदली में

कि ढलान गुरूत्व खि‍सकाता

घाता धंस आता वक्ष रेतीला

थि‍रता ... आ तटी पर

धाराएं खि‍सकातीं तली

भीरू मन छूता जल कांपता दो पल

छटपटाती चेतना की जीभ

अतहतह प्राण देते ढकेल धारा मध्य

सौंदर्यकामी आत्मा

देती उलीच

सारा भय निरभय ।

1991