चिकनी धूल भरी बदली ज्यों शुष्क भुर-भुरी
तलुए दो या छायाएं हृदय की
कि दो विमान खो ... खो ... जाते बदली में
कि ढलान गुरूत्व खिसकाता
घाता धंस आता वक्ष रेतीला
थिरता ... आ तटी पर
धाराएं खिसकातीं तली
भीरू मन छूता जल कांपता दो पल
छटपटाती चेतना की जीभ
अतहतह प्राण देते ढकेल धारा मध्य
सौंदर्यकामी आत्मा
देती उलीच
सारा भय निरभय ।
1991