धरीक्षण मिश्र (1901-1997) भोजपुरी भाषा के एक विलक्षण एवं सिद्ध आचार्य कवि हैं । वे भोजपुरी के ऐसे प्रथम कवि हैं, जिसने स्वयं सृजित लक्षणों-उदाहरणों के आधार पर एक स्वतंत्र अलंकार-शास्त्र की रचना की है । मिश्र जी द्वारा रचित पारंपरिक अलकासे की संख्या एक सौ चालीस है । उन्होंने कुछ नए अलंकारों की भी सृष्टि की है । मिश्र जी ने अपने अलंकार-शास्त्र के लक्षणों और उदाहरणों के रूप मे जिन हज़ारों छंदों की रचना की है, उनमें जीवन और परिवेश अनगिन रंगों-रूपो में मुखरित हुआ है । इन छंदों के दर्पण मे समाज का सुस्पष्ट चित्र देखा जा सकता है । कवि के अलंकारों में चित्रित समाज की बहुरगी छवियों के आलोक में साहित्य के समाजशास्त्रीय अध्ययन में कुछ नए और महत्त्वपूर्ण पृष्ठ जोड़े जा सकते है । अलंकार के क्षेत्र में कवि का कार्य सर्वथा मौलिक एवं विशिष्ट है । इससे भोजपुरी-साहित्य की समृद्धि, गरिमा और श्रेष्ठता का विस्तार भी होता है । भोजपुरी-साहित्य के लिए कवि का अलंकार-शास्त्र एक विशिष्ट अवदान के रूप मे देखा जाना चाहिए ।
लोक में मिश्र जी की पहचान एवं ख्याति एक व्यग्यकार के रूप में है । इनकी प्रकृत काव्यभूमि व्यंग्य है । शायद ही कोई कविता ऐसी हो, जिसमें व्यग्य का रस या उसका पुट न हो । मिश्र जी के व्यग्य बडे पैने, जीवत, धारदार और मार्मिक हैं । उनके संपूर्ण काव्य-संसार में व्यग्य की प्रधानता है ।
धरीक्षण मिश्र का संपूर्ण रचनाकर्म धरीक्षथ मिश्र रचनावली के चार खंडों में प्रकाशित है । अपने साहित्य सृजन के लिए उन्हें प्रथम विश्व भोजपुरी सम्मेलन द्वारा सेतु सम्मान (1995) तथा साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा भाषा सम्मान (1997) से विभूषित किया जा चुका है ।