लज्जा से नीचा मुँह किए हुए गुज़रते हुए साल ने
अपना दाय सौंपते हुए आगन्तुक वर्ष को
कहा --
मनुष्य के पापों की गठरी में लिथड़ा यह दुर्वह भार
मैं ढोता रहा हूँ जो अब तक
बत्स, तेरे कन्धों पर अब मैं लाद रहा हूँ ।
वज्र से कठोर क्रूर दारुण हिंस्र नरपशु
प्रतिदिन अबलाओं पर करते रहे बलात्कार
कच्चा माँस खाने को आतुर जो माताओं की देह तक को नोंचते रहे
धरती जिनसे बनती जा रही पशुओं से संकुल
इसे बचाना और लाज अपनी माता के दूध की रखना
जो शील हरते आ रहे स्त्रियों का उन्हें सूली पर चढ़ाना
इस तरह बुजुर्ग के द्वारा सखेद सीख दी गई
जिस शिशु नववर्ष को
वह यहाँ की स्त्रियों के लिए मंगलमय बने ।