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वर तलाशी / सुरेन्द्र रघुवंशी

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घूम फिरकर कहते हैं पिता
वर-तलाशी क्या हुई
जैसे गोवर्धन की परिक्रमा ही हो गई
फिर भी अपनी राधा के लिए
कोई श्याम न मिल सका

वर क्या हूए
जैसे धुर्रा की हाट के बैल हो गए
कि जो बोली लगाए सबसे ज़्यादा
नीलमी में ले जाए उन्हें

नदी, नालों, बागडा़ें और खलिहानों के किनारे
भ्रष्टा खाते फिरते हैं साले
सभ्य लोगों के लिए

यह सभ्य समाज का
अति सभ्य कार्यक्रम स्थल है
जहाँ बहुत करीने से सजी हैं कुर्सियाँ

सावधान !
यहाँ हँसना मना है
आपकी ऐसी हरकतें
बेहूदगी की श्रेणी में दर्ज की जाएँगी
आपकी खाँसी भी
विघ्न साबित हागी
निर्मित की गई ख़ामोशी के लिए

यह चुनिन्दा और ख़ास लोगों के लिए है
और ख़ास लोग
आम लागों की तरह
ठहाके नहीं लगाते
ज़रा ध्यान से देखो
यहाँ सब लोग
गम्भीरता की चादर ओढ़कर नहीं बैठे हैं ?

सब अति सावधान
धुले-पुछे और सजे-धजे
यहाँ तक दरवाज़े पर खड़ा दरबान भी
थोड़ा झुकता है
और बगैर मुँह खोले अभिवादन का अर्थ देता है