छूँछे घड़े
- बाट के टूटे
ऊँचे नहीं--
- पड़े हैं नीचे
कभी जिन्होंने
- पौधे सींचे
अब
- मन चीते
हाथ गहे के
- वे दिन बीते
अंक लगे के
- शीस चढ़े के
सपने रीते
(रचनाकाल : 06.03.1965)
छूँछे घड़े
ऊँचे नहीं--
कभी जिन्होंने
अब
हाथ गहे के
अंक लगे के
सपने रीते
(रचनाकाल : 06.03.1965)