मथुर में चारों ओर मचा है रोर अचानक दुर्निवार
अदृश्य हो गया मूर्तिकार,अदृश्य हो गया मूर्तिकार
वासवदत्ता के महलों में वह अंतिम बार कया देखा
दिन कई हो गये किन्तु, दिखी अब तक न कहीं धँुधली रेखा
छाया है कई दिनों से रे ! उसके निवास पर अंधकार
वासव भी विस्मित थी अधीर, उद्वेलित, जाने कहाँ गया
ढूँढ़ा उसको चहुँओर गया, क्या यहाँ गया, क्या वहाँ गया
वासव ने भेजे हरकारे, ढूँढो-ढूँढो रे ! जहाँ गया
राजाज्ञा से भी खोज बहुत प्रारंभ हो गयी धुआँधार
घर-घर में उसे गया ढूँढा, पर चारों ओर उदासी थी
था नहीं मिला कुछ अता-पता, थक गयाी सुनयना दासी थी
उसने भी खोजा बहुत, किन्तु, आँखें प्यासी की प्यासी थी
वासव शंका के घेरे में आ गयी अचानक अधर थार