Last modified on 13 दिसम्बर 2014, at 20:59

आदमी का नशा / सईददुद्दीन

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:59, 13 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सईददुद्दीन |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> दो ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दो शराबी दरख़्त
अपना बड़ा सर हिला हिला कर झूम रहे हैं
सूरज के जाम से
आज उन्होंने
कुछ ज़्यादा ही चढ़ा ली है
अब वो
अपनी शाख़ों में बैठे
परिंदों की चहकार से ज़्यादा
सड़क पर चलते ट्रैफिक के शोर को
इंहिमाक से सुन रहे हैं
दोनों शराब दरख़्त
जड़ों समेत
सड़क पर आ गिरे हैं
ट्रैफ़िक जाम हो जाता है
बसें, कारें
स्कूटर और साइकलें रूक जाती हैं
हॉर्न बजना शुरूअ हो जाते हैं
मगर नशे में धुत दरख़्त
जड़ों समेत
सड़क के बीचों बीच पड़े हैं
मैं ने दरख़्त से एक शाख़ तोड़ी
और सारी रात
अपने आस पास रेंगने वाली कीड़ों को
मारने में गुज़ार दी
सुब्ह दूसरे कीड़ों के साथ साथ
मुझे उस की लाश अपने पैरों के आस पास ही मिल
जिस के हुक्म पर मैं ने अपनी मश्‍कीज़े का पानी
रेत पर गिरा दिया था
और नंगे पैर उस के पीछे हो लिया था
शायद मैं ने अंधेरे में
दरख़्त की शाख़ से उसे भी कुचल दिया था
मैं ने दरख़्त को देखा
मगर वहाँ तो सिरे से कोई दरख़्त था ही नहीं
मैं ने आगे बढ़ने की ठानी
फिर मुझे अंदाज़ा हुआ
कोई मेरे साथ चल रहा है
मैं ने उस मुख़ातिब किया
और उसे मश्‍कीज़े का पानी ज़ाए करने का हुक्म दिया
और उस के आगे आगे चलने लगा