Last modified on 5 जनवरी 2008, at 20:14

हम औरतें / वीरेन डंगवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 5 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=इसी दुनिया में / वीरेन डंगवाल }} र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


रक्त से भरा तसला है

रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में


हम हैं सूजे हुए पपोटे

प्यार किए जाने की अभिलाषा

सब्जी काटते हुए भी

पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई

प्रेतात्माएँ


हम नींद में भी दरवाज़े पर लगा हुआ कान हैं

दरवाज़ा खोलते ही

अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर

पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं


हम हैं इच्छा-मृग


वंचित स्वप्नों की चरागाह में तो

चौकड़ियाँ

मार लेने दो हमें कमबख्तो !