Last modified on 25 दिसम्बर 2014, at 23:18

तुम्हारी तस्वीर / जय छांछा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 25 दिसम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दीवार पर टंगी तुम्हारी तस्वीर
फूल जैसी
साधु जैसी
सच, नाराज़ न होने वाली / न चुभने वाली
आनंद के क्षण जैसी
मोहनी की खान जैसी
दीवार पर टंगी तुहारी तस्वीर ।

कोयलकी कूहू-कूहू जैसी
सुनने में मधुर तम्हारी बोली
टेपरिकार्ड बजाते
बार-बार सुनता हूँ
यादों को ताज़ा करता हूँ
विरह को धाता हूँ
नाराज़ मत होना ऐ मेरी प्रिय !
बचत खाता खोलकर भी
जुदाई को संजोए हुए हूँ
नदियों की मुहाने जैसी है
दीवार पर टंगी तम्हारी तस्वीर ।

चकित हूँ मैं इन दिनों
बेवज़ह ही दुखता है
तन दुखता है / मन दुखता है
या कहूँ ओ मेरे हुज़ूर !
कहाँ दुखता है, क्यूँ दुखता है
काश! कि इसका बीमा हो पाता
अदृश्य यह पीड़ा और
बैमौसम की ये यादें
लज्जा के कारण बिन बोले रहता हूँ
यादों की प्रधान कार्यालय है
दीवार पर टंगी तुम्हारी तस्वीर ।

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला