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गाओ गाओ गान / त्रिलोचन

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गाओ गाओ गान

क्षितिज कोर पर आई आई

उषा नई छवि से मुसकाई

विहग सुनाने लगे जाग कर

अपने अपने गान


नीरव यह प्रकाश चलता है

छाया में विकास पलता है

प्राण प्राण में रूप रूप में

व्यापे छवि के गान


देख देख कर फिर सुन सुन कर

कुछ अभिनव संबंध निरंतर

उमड़ उमड़ आता है स्मृति में

बन जाता है गान


कलियों में फूलों में आया

नया निमंत्रण सब ने पाया

साक्षी है सब समारोह के

जीवन सुंदर गान


सब अपनी अपनी लय पाएँ

कभी तुम्हारा स्वर दुहराएँ

एक लहर मैं लहराएँ फिर

कंठ कंठ के गान

(रचना-काल - 30-10-48)