Last modified on 6 जनवरी 2008, at 05:01

अभी चला क्या / त्रिलोचन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:01, 6 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} अभी चला क्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अभी चला क्या, बहुत आगे, चलना है


समतल के प्रिय विस्तारों पर

भरी भूमि, नभ के तारों पर

रूप मनोहर कोई मृदु स्वर

सन्नाटे से जगता है मन की कलना है


सरिता की संगीतमयी गति

नहीं जानती जीवन में यदि

गति जीवन है यति उस की क्षति


यति पर रुक कर फिर गति को पथ पर ढलना है


दीप क्षितिज में दीपित नीरव

नहीं कहीं उठता कोई रव

तमस् ज्योति का शाश्वत आहव

सुन प्राणों की गूँज दीप जैसे जलना है


चरण चिह्न चुप चुप है पथ पर

कहाँ गई ध्वनि इन की उठ कर

चल चरणों की गति अपना कर

प्राण प्राण को चरैवेति स्वर में पलना है

(रचना-काल - 04-11-48)