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चन्देरी / सुरेन्द्र रघुवंशी

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यह एक प्राचीन शहर है
कलात्मक साड़ियों की सुन्दरता में लिपटा हुआ
बुनता हुआ जीवन के वस्त्र, समय के ताने-बाने में
यहाँ घाटी की तरह कटी रह गईं इच्छाएँ

दिल्ली के रास्ते तक नहीं पहुँचाता यहाँ का दरवाज़ा
किलाकोठी वाली पहाड़ी पर मौजूद बैजू बाबरा
छेड़ते हैं रोज राग पर नहीं सुनता देश
वे अक्सर कहा करते हैं कि शासक बहरे हो गए
और जीवन की आपाधापी में बाबरे हो गए लोग
राजा शिशुपाल के अहंकारी अट्टाहास के नीचे दबा है
यहाँ इतिहास का गौरव
और कृष्ण की चेतावनियों को पढ़ रहा है संसार

यहाँ के पत्थर बोलते हैं इतिहास की भाषा
और यह भी कि अपने सतीत्व की रक्षा के लिए
आज भी स्त्री को देखा जा सकता है यहाँ से
जौहर करते हुए विडम्बनाओं की अग्नि-लपटों में
मुग़ल आक्रान्ताओं के घावों से सिहर उठी यह नायिका
विन्ध्याचल पर्वत शृंखला की गोद में विश्राम करते हुए
अपने लिए समतापूर्ण न्याय की प्रतीक्षा कर रही है