Last modified on 6 जनवरी 2008, at 05:51

मुझे लगता है / त्रिलोचन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:51, 6 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} मुझे लगता ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुझे लगता है कोई बुलाता है

मैं क्या करुँ

साँझ पड़ते ही मन में प्रतीक्षा सी

आ जाती है

कोई आएगा कोई आएगा

पर आती है

सुनसान अँधेरी रात

तिमिर छा जाता है

बैठे बैठे उदासी जी की

कहाँ खो जाती है

मेरे मन की मलिनता हँसी

की लहर धो जाती है

फिर लगता है

अब आया सलोना

प्रभात जगत जग जाता है


(रचना-काल - 23-7-56)