Last modified on 6 जनवरी 2008, at 06:17

आई जो हार / त्रिलोचन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:17, 6 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=सबका अपना आकाश / त्रिलोचन }} आई जो हार ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आई जो हार

गई कहाँ कहीं

मैं हूँ लाचार


धुरियाई देह

इतनी है खेह

पथ में ही पड़े

रहे, कहाँ गेह

खोजे कब मिला

कोई आधार


उषा मुसकराय

संध्या हँस जायॉ

कोई क्या पिए

कोई क्या खाय

पल छिन दिन मास

जब हो मझधार

(रचना-काल -9-2-62)