आँख ये धन्य है (कविता संग्रह)
सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल
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शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ
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मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद
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