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बखत / विजेन्द्र

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बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ
उधडी खाल पै
लगा नमक है
कहता गीत सुनाऊँ
कुत्ता खावै माखन रोटी
खुद चाबै
पुट्ठे की बोटी।
मैं तो खाक
छानता डोलूँ
बैठा ले तू अपनी गोटी।
भूख लगे तो
ज्वाला पी लँू
ठूर्री चनंे चबाऊँ
बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ ।
ऊपर से लोहा लागे
बाँस है
अन्दर पोला
बजा-बजा तू
ढोल-मजीरे
गाऊँ नख-शिख ढोला।
मुझको वेद बखाने अदबद
खुद मसके
बिरियानी
मेरी फसल को
दाझ सुखाबै
चंपा है हरियनी
एक बात तू हँसके कहता
करता लीपा-पोती
साँच को ठेल परे करता है
पोये नकली मोती।
मुझ पर हरदम
गाज गिर रही
तू बौराया फिरता
किसकी आँख
पडूँ मैं जाकर
तिनका मैं हूँ
बुरे बखत की बात झेलता
किसको बोल बताऊँ