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प्यार / विजेन्द्र

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कैसे जानूँ कौन सगा है
बात-बात में चलती कैंची
टंगड़ी मार खेल खेलते
फाँस पड़ी गर्दन में खेंची।
प्यार की बात
नीरी दगा है
कहते कुछ हैं
करते दूजा
मन में छुरी दिखावें पूजा
जो जितना भलमानुस दिखता
उसको उतना खुब ठगा है।
राम नाम की फेरूँ माला
जग्य, कथा, तीरथ भारी
करता फिरता बारी-बारी
बैठ अँधेरे तल में छिप कर
करता रहता पीला काला
कौन-सा रिश्ता-कौन सा परिचय
आते धन का नाता सच है
कहते हैं अमिरित है बानी
टाँग उठाकर मूत रही है
नीतिशास्त्र पर-कुतिया कानी
रूको, रूको ये देखो चक्खो
कथन हिए का
विष में पागा।
2003