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अकथ / कन्हैया लाल सेठिया

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कथ कथ’र
हुग्यो आखतो
कोनी कथीज्यो
अकथ !
खिण में लागै
जाणै
बांध लियो
आभै नै
रामधणख
पण
फरूकतां ही
आंख
टूट ज्यावै
दीठ रो भरम,
अंतस में
बैठो है एक
अबोळो मरम
कोनी पकड़ै
जको
म्हारी अकन कुंआरी
वेदणा रो हाथ
गीला है
जकी रै आंसुवां स्यूं
म्हारा नैण,
गळगच है
गीतां स्यूं
म्हारा कंठ !