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विकास / राजू सारसर ‘राज’

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परमाणु अर मिसाइलां री
होड में
विकास अर विणास री
दौड़ में
होवै जतन
कोई नीं होवै बीमार
नीं सोवै कोई
भूखौ तिरसायौ।
धुप जावै
अणपढता रो कळंक।
हर डील नैं गाभा
हर सिर नैं छात
सुख अर सायन्ती सूं
बसै सगळा
बैर भाव तज’र
विसव-कुटम री
रचना करां
पच्छै ई
क्यूं बणैं है
जैविक-रासायनिक हथियार
उत्पादकता घणी’ज
बधगी मसीन सूं
रोटी पण बण खोसली
गरीब सूं।
ठाह नीं
लोगां रै बिचाळै
दूरी घटी है’क
बधी है
विकास री गाडी
कुण सै मार
चाल पड़ी है?
भलाई भर्या
पड़या है अन्न-भण्डार
भूख पण
कुपोसण री होय’र सिकार
पड़गी बीमार।
डर लागै
म्हूं ई किणी
मिसाइल रै निसानै माथै
कदास नीं होऊं
थे ई बताऔ
इण विकास नै,
हांसू’क रोऊं।