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आस्था / संजय आचार्य वरुण

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कदे कदे
हिलण लाग जावै
म्हारी आस्था री इमारतां
हर उण घटना रै पछै
जकी म्हारै नीं चावतै भी घटी।

म्हारी आस्था
निबळी कोनी
सबळ है
इणी बाबत बा चावै
के बो ई हुवणौ चाहिजै
जकौ बा चावै।
पण हुवै बो ही’ज
जकौ हुवणौ है
अर होणी ने
ना म्है टाळ सकूं
ना म्हारी आस्था
चावै, बा कितरी भी
सबळ क्यूं ना हुवौ।