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मल्लाहनामा (कविता) / अभिज्ञात

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न जाने किस घोंघे से
निकल आते हैं मल्लाह
मगर वे जब भी आते हैं
ले आते हैं अपने साथ तिलस्म
तिलस्म जो कभी नहीं टूटता।

मल्लाह ले आते हैं अपने साथ मल्लाहनामा
कि मल्लाह खुद तय करता है
सुरक्षित घाट, सवारी से भी पहले।

मल्लाह कभी नहीं डूबता
भले डूब जाये नाव
उस पर के सारे सवार

मल्लाह पैदा होता है मल्लाह से
कहता है एक और
समर्थन में
सिर झुका देते हैं कई
मल्लाह पूछता है लोगों से
तुमने देखी है कभी नाव?
क्या होती है कीमत नाव की
कैसे और चीज़ की बनती है?
लोग अनभिज्ञता से हिला देते हैं सिर।

कहते हैं दो एक बच्चे-
उन्होंने पड़ी है नाव इतिहास में
यह उनके जनम से पहले की बात है
पता नहीं अब वह कैसे होगी
और कितनी बदल गयी होगी
उसका कोई निश्चित रूप होगा भी या नहीं ?

मल्लाह बड़े अदब से
ले आता है एक कागज़ की नाव
जो उसके जूते के आकार की होती है
और धर देता है मेज़ पर
दिलाता है सबको यक़ीन
इसी से पार हो जायेगी वैतरिणी।
कुर्सी पर बैठकर
निहारता है उसे
और सो जाता है कुर्सी पर ही
लोग रह-रह कर देखते हैं अपनी प्रगति
जिस पर साधुवाद देते हैं मल्लाह के खर्राटे
...जब दीमकें चाट जाती हैं नाव
खुलती है नींद मल्लाह की।

लोग चुप और अनुशासनबद्ध सब देखते हैं
आखिरकार वे जानते हैं
नाव से बड़ा होता है मल्लाह
नाव बनाता है मल्लाह।
वे मल्लाह नहीं बदलते
वे देखते हैं
मल्लाह से ही
पैदा होते मल्लाह को।