Last modified on 11 जनवरी 2008, at 22:15

घोड़े से विनती / बद्रीनारायण

Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 22:15, 11 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बद्रीनारायण |संग्रह= }} भले नदी में डूब जाओ घोड़े<br> भले ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भले नदी में डूब जाओ घोड़े
भले पहाड़ी से कूद जाओ
धरती से ऊपह जाओ घोड़े
मत जाओ उनके घुड़साल में
मत जाओ

आएँगे सुबह और कहेंगे
चलो ! रथ में जुतने चलो
चलो ! कुरूक्षेत्र में नया युद्ध लड़ो
चलो ! फिर से वाटरलू चलो
चलो ! रानी फूलमती चाहती है चूमना
तुम्हारा मुखड़ा
उसके चौसर की चाल चलो
वे आएँगे और कहेंगे
बुद्धराज बहुत देखने लगा है सपने

चलो, उसके सपनों पर खूनदार टाप
ले चलो ‍!
चलो छातियों पर, चलो दिलों पर
चलो हजारों स्त्रियों को रौंदने चलो
नहीं तो अंत में कहेंगे--
घोड़े चलो ! कसाई के पाट पर चलो