Last modified on 26 फ़रवरी 2008, at 23:51

अश्रांत आविर्भाव / इला कुमार

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण


सड़क की खुरदरी सतह हो

या सुचिक्कन प्रासाद का प्रवेशद्वार

कोई बढ़ता चलता है

हर पल पर साथ साथ


निर्जन वनों में

ऊंचे पहाड़ों तले फैली विस्तृत चरागाहों में

शांत उदास सडकों पर

किसी भी अमूर्त से पलांश में


अचानक अवतरित हो उठता है पाशर्व में

भरमाता-सा

अपनी उदार बाहों में भर चौंका देता है

एक दिलासा

मैं हूँ

हर पल तुम्हारे साथ

हर पग को थामता


सूर्य का यह अश्रांत आविर्भाव