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जयति भवानी / चन्द्रमणि

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जयति भवानी हे कल्याणी
सकल ताप परिताप हरू
देवहुकें दुःख दूर कयल मा
अधमाधम हम, पाप हरू।

जगत विदित अछि कथा अहाँ छी,
घट-घट वासिनि हे मइया
कखनहुँ काली कखनहुँ दुर्गा
रूप-धारिणी हे मइया
कामाख्या विध्यांचल दौड़ी
हमर मोह भवचाप हरू।। देवहुँ.....।।
जखन-जखन दुःख बढ़लै, बनलौं
दैत्य विनासिनि हे मइया
रणमे शुम्भ-निशुम्भ संहारल
महिषा-मर्दिनि हे मइया
मरूभूमि केर मृगा सनक मन
हमर दुःखक अभिशाप हरू।। देवहुँ....।।
रंक निमिष भरिमे हो राजा,
दौड़े आन्हर हे मइया
बौका गाबै गीत, चढ़ै गिरिवर
पर नाड्ंर, हे मइया
चरण ‘चन्द्रमणि’ बिलखि पुकारी
हमर कलंकक छाप हरू।। देवहुँ.....।।