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सूखा / वीरेन डंगवाल

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सूखा पिता के हृदय में था

भाई की आँखों में

बहन के निरासे क्षोभ में था सूखा

माता थी

कुएँ की फूटी जगत पर डगमगाता इकहरा पीपल

चमकाता मकड़ी के महीन तार को

एक ख़ास कोण पर

आँसू की तरह ।


सूर्य के प्रचण्ड साम्राज्य तले

इस भरे-पूरे उजाड़ में

केवल कीचड़ में बच रही थी नमी

नामुमकिन था उसमें से भी निथार पाना

चुल्लू भर पानी ।