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बांदा / वीरेन डंगवाल

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मैं रात, मैं चांद, मैं मोटे काँच

का गिलास

मैं लहर ख़ुद पर टूटती हुई

मैं नवाब का तालाब उम्र तीन सौ साल ।


मैं नींद, मैं अनिद्रा, कुत्ते के रुदन में

फैलता अपना अकेलापन

मैं चांदनी में चुपचाप रोती एक

बूढ़ी ठठरी भैंस

मैं इस रेस्टहाउस के ख़ाली

पुरानेपन की बास ।

मैं खपड़ैल, मैं खपड़ैल ।

मैं जामा मस्जिद की शाही संगेमरमर मीनार

मैं केदार, मैं केदार, मैं कम बूढ़ा केदार ।