Last modified on 30 मार्च 2015, at 14:00

उनकी भाषा / अनिल करमेले

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 30 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल करमेले |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे एक ऐसी भाषा का उपयोग करते हैं
कि हम अक्सर
असमर्थ हो जाते हैं
उनकी नीयत का पता लगाने में

हम भरोसे में रहते हैं
और भरोसा धीरे-धीरे भ्रम में बदलता जाता है
जब छँटता है दिमाग से कोहरा
नींद छूटती है सपनों के आगोश से
आँखें जलने लगती हैं सामने की तस्वीर देखकर

लेकिन हमारी मुट्ठियाँ तनें
और उबाल आए बरसों से जमे हुए लहू में
उससे पहले
आते हैं हम में से ही कुछ
बन कर उनके बिचौलिए
डालते हैं ख़ौफ़नाक तस्वीरों पर परदा
और लगा देते हैं हमारे गुस्से में सेंध

अपने लाभ और लोभ में घूमते हुए
हम भटकते रहते हैं इधर से उधर
और कायरों की तरह
अपनी भाषा की तमीज़ में
लौट आते हैं...