मैं बटुआ हूँ
भरी दोपहरी
पड़ा हूँ सड़क पर अकेला
क्या आप लोगों को दिखाई नहीं देता मैं
आपके पैर ठोकर मारते हैं मुझे
और गुज़र जाते हैं मेरे निकट से
आप बेवकूफ़ हैं क्या
क्या आँखें नहीं हैं आपके
बटन हैं
आपके चलने से जो धूल उड़ रही है
आपकी नज़रों से बचा रही है मुझे
जैसे ही दिखाई पड़ूँगा मैं
वह सब कुछ आपका होगा
जो मेरे भीतर छिपा है
मेरे मालिक को ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं
मैंने स्वयं ही गिराया है ख़ुद को धरती पर
यह मत सोचिए कि मज़ाक है यह
जैसे ही झुकेंगे आप मुझे उठाने
कोई धागा खींच लेगा
और हँसेंगे बच्चे आपके ऊपर
कि देखो, कितना मूर्ख बनाया
आप डरें नहीं
कि स्त्रियाँ खड़ी होंगी खिड़की पर
आपको झुकते देख मुस्कराएँगी वे
और आपको शर्म से लाल होना पड़ेगा
नहीं, मैं धोखा नहीं हूँ अँधेरे का
वास्तविकता हूँ
कृपया रुकिए एक क्षण को
उठाइए मुझे
और देखिए कि मेरे भीतर क्या है
मैं नाराज़ हूँ आपसे
और डरता हूँ सिर्फ़ इस बात से
कि अभी, बिल्कुल अभी
इस भरी दोपहरी में
मुझे देख लेगा कोई अज़नबी
वह व्यक्ति नहीं, जिसकी मुझे प्रतीक्षा है
बल्कि वह, जिसे मेरी ज़रूरत नहीं
वह झुकेगा और मुझे उठा लेगा