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चिरंतन / सुधीर सक्सेना
अनिल जनविजय
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जब भी हम भरते हैं
मुट्ठी में रेत,
मुट्ठी की रेत से ज़्यादा रेत
नीचे छूट जाती है,
वसुन्धरा ।