Last modified on 3 अप्रैल 2015, at 17:43

तुम्हारा स्मरण / जयशंकर प्रसाद

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:43, 3 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |संग्रह=कानन-कुसुम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सकल वेदना विस्मृत होती
स्मरण तुम्हारा जब होता
विश्वबोध हो जाता है
जिससे न मनुष्य कभी रोता

आँख बंद कर देखे कोई
रहे निराले में जाकर
त्रिपुटी में, या कुटी बना ले
समाधि में खाये गोता

खड़े विश्व-जनता में प्यारे
हम तो तुमको पाते हैं
तुम ऐसे सर्वत्र-सुलभ को
पाकर कौन भला खोता

प्रसन्न है हम उसमे, तेरी-
प्रसन्नता जिसमें होवे
अहो तृषित प्राणों के जीवन
निर्मल प्रेम-सुधा-सोता

नये-नये कौतुक दिखलाकर
जितना दूर किया चाहो
उतना ही यह दौड़-दौड़कर
चंचल हृदय निकट होता