Last modified on 5 अप्रैल 2015, at 16:08

चमेली / श्रीनाथ सिंह

Dhirendra Asthana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धूल उड़ी या बरसा पानी,
मूर्ख बढ़े या उपजे ज्ञानी।
सबको हँसती मिली चमेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।
राजाओं में ठनी लड़ाई,
जीत हुई या आफत आई।
महल ढहे या उठी हवेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।
भय चिन्ता को पास न लाओ,
आगे बढ़े बराबर जाओ।
भूलो मत यह सखा सहेली,
फिर उजड़ी फिर खिली चमेली।