Last modified on 25 मई 2008, at 11:39

बेटियाँ / सुरिन्दर ढिल्लों

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 25 मई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: पंजाबी के कवि  » संग्रह: आज की पंजाबी कविता
»  बेटियाँ

मेरी बेटी
गहरी नींद में सो रही है
सूरज अपने पूरे जोबन पर आ चुका है
मैं बेटी को
प्यार से उठाने की कोशिश करता हूँ
पर वह करवट बदल कर
फिर गहरी नींद में सो जाती है

अब मैं खीझ कर
फिर से उसे उठाने लगता हूँ
तो मेरी बेटी उनींदी आँखों से
मेरी ओर देखती है

मानो वास्ता दे रही हो
पापा…
मुझे बचपन की नींद तो
जी-भरकर ले लेने दो
फिर तो मुझे
सारी उम्र ही जागना है…।