Last modified on 4 मई 2015, at 16:08

कुदरत रै आगै / निशान्त

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 4 मई 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पाड़ोसी बगा देवै
गळी में थोड़ो-घणो पाणी
तो आपां
मरण नै त्यार हो जावां

पण मेह रै पाणी नै
जूतियां खोल’र
लांघ ज्यावां ।